कोलकाता । मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में रीजनल ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को आर्थिक मदद देने पर काम शुरू कर दिया है।इसके बाद साफ हो जाता है कि मोदी सरकार जमीनी स्तर पर क्रेडिट गैप की समस्या को खत्म करने को लेकर गंभीर है। नई पेंशन स्कीम और ज्यादा ग्रेच्युटी के कारण आरआरबी की जबाबदेही बढ़ी है। इसकारण उन पर आर्थिक बोझ बढ़ा है। लिहाजा,उनके कैपिटल में कमी आई है और कृषि संकट का सामना कर रहे ग्रामीण सेक्टर को कर्ज देने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई है। मामले से जानकार दो लोगों ने बताया कि इन बैंकों को अपने खातों की प्राथमिकता के आधार पर अंतिम रूप देने और स्टैच्यूटरी ऑडिट को पूरा करने को कहा गया है, जिससे पता लगाया जा सके कि उन्हें कितनी पूंजी की जरूरत है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से भी उनकी जबावदेही को तय समयावधि में चुकाने के लिए संपर्क किया गया है। आरआरबी की नोडल एजेंसी नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डिवेलपमेंट (नाबार्ड) ने अगले 5 साल में इन बैंकों की कैपिटल रिक्वायरमेंट का पता लगाने के लिए उनसे पेंशन और ग्रेच्युटी लायबिलिटीज की जानकारी मांगी है। इस दौरान सीआरएआर को 9 प्रतिशत से ज्यादा बनाए रखने का टारगेट रखा गया है।
आरआरबी चेयरपर्सन को भेजे एक नोट में नाबार्ड ने कहा, सभी आरआरबी से वास्तविक और प्रोजेक्टेड डेटा के आधार पर अपनी फंड की जरूरत पर रिपोर्ट तैयार करने और उस जमा कराने का आग्रह किया जाता है। नाबार्ड ने इन बैंकों को पहले तीन साल यानी 2019 तक के डेटा को एक्चुअल बेसिस और बाद के चार साल के लिए प्रोजेक्टेड बेसिस पर तैयार करने को कहा है। डेटा सौंपने के लिए 20 जून की डेडलाइन तय की गई है। आरआरबी के एक सीनियर अधिकारी ने बताया,हमसे अतिरिक्त जबावदेही की प्रोविजनिंग करने को भी कहा गया है। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरआरबी की नई पेंशन स्कीम को मंजूरी दी है। इसके तहत अब उनके एंप्लॉयीज को नेशनलाइज्ड बैंकों के बराबर पेंशन मिलेगी। नई स्कीम में पहले से जारी पेंशन को भी शामिल किया गया है। इसके बाद सभी बैंकों ने अपने प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट से फंड ट्रांसफर कर एक पेंशन फंड बनाया है। इससे इन बैंकों की कैपिटल पर दबाव बढ़ सकता है।