आषाढ़ मास में कृष्ण पक्ष एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। मुक्ति प्रदान करने वाले इस व्रत के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। तीनों लोकों में इस एकादशी को बहुत महत्व दिया गया है। योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से हो जाती है। इस व्रत में तामसिक भोजन का त्याग कर ब्रह्मचर्य का पालन करें। जमीन पर सोएं। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की आराधना करें। इस व्रत में योगिनी एकादशी की कथा अवश्य सुननी चाहिए। इस दिन दान करना कल्याणकारी होता है। पीपल के पेड़ की पूजा करें। रात्रि में भगवान का जागरण करें। किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लाएं। द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।
कथा
स्वर्गलोक की अलकापुरी में भगवान शिव के परम भक्त कुबेर राज करते थे। उन्हें हर दिन हेम नामक माली भगवान के पूजन के लिए फूल देकर जाता था। एक दिन हेम माली पूजा के लिए पुष्प तो ले आया लेकिन रास्ते में उसने सोचा अभी पूजा में समय है क्यों न घर चला जाए। घर पर वह पत्नी के साथ रमण करने लगा। उधर, पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प न आने से व्याकुल हो गए। राजा ने सैनिकों को हेम माली के घर भेजा और सैनिक उसे पकड़ लाए। राजा कुबेर ने उसे स्त्री का वियोग सहने और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी हो जाने का श्राप दिया। पृथ्वी पर भूख-प्यास के साथ कोढ़ ग्रस्त शरीर को लेकर हेम माली किसी तरह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पंहुचा। महर्षि के पूछने पर उसने सारी बात बताई। ऋषि मार्कण्डेय ने उसे आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली योगिनी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। इस व्रत को उसने विधि विधान से किया और श्राप से मुक्ति पाई।