देश और दुनिया में काफी लंबे समय से महिलाओं के लिए नकाब या बिकनी क्या जरुरी है, जैसे अनावश्यक विषय पर बहस जारी है। इस मसले को कभी धर्म विशेष से जोड़कर देखा जाने लगता है तो कभी सुरक्षा की दृष्टि से नकाब को नकार दिया जाता है। वहीं नारी स्वतंत्रता के पक्षधर नकाब के साथ ही साथ बिकनी को भी जरुरी करार देते हैं। बहरहाल नकाब जिस दृष्टि से आवश्यक बतलाया जाता है उसमें धर्म भी प्रमुख है। वहीं भारतीय संस्कृति में इसे शर्म और हया के साथ ही सम्मान का प्रतीक मानते हुए घूघंट के तौर पर स्थापित किया जाता है। इस बात को लेकर पिछले दिनों उर्दू शायर और फिल्म-गीतकार जावेद अख्तर अतिवादियों के निशाने पर आ गए थे। दरअसल उनका मानना था कि जिस तरह से नकाब गैरबाजिब करार दिया जा रहा है उसी तरह से राजस्थान में बहुओं का लंबा घूंघट लेना भी गैरबाजिब होना चाहिए। इस आशय की बात कहते हुए जावेद अख्तर बतलाना चाहते थे कि महिलाओं की आजादी में जो भी अवरोध हो उसे हटाया जाना चाहिए, लेकिन कथित तौर पर इस संदेश को गलत तरीके से समझा गया और पेश किया गया, जिससे हंगामा हो गया। बहरहाल यहां हम न तो नकाब का समर्थन करने बैठे हैं और उन ही उसका विरोध ही कर रहे हैं, बल्कि दुनिया को यह बतलाने की कोशिश कर रहे हैं कि जहां इंसानी जिंदगी की सुरक्षा का सवाल आ जाता है वहां नकाब को हटाया भी जा सकता है और उसे जरुरी करार भी दिया जा सकता है। ठीक वैसे ही जैसे कि इस समय इस्लामिक देश ट्यूनीशिया की सरकार ने अपने एक आदेश के जरिए कर दिखाया है। दरअसल ट्यूनीशिया सरकार ने एक आत्मघाती हमले के बाद नकाब पर प्रतिबंध लगा दिया है और अपने आदेश में कहा है कि कोई भी व्यक्ति मुंह ढंककर सरकारी व प्रशासनिक कार्यालयों में प्रवेश नहीं पा सकेगा। इस तरह नकाब पहनने वाली महिलाएं भी इन कार्यालयों में प्रवेश नहीं कर पाएंगी और यदि उनके लिए निर्दिष्ट स्थलों पर जाना जरुरी होता है तो वो अपने मुंह से नकाब हटाएंगी, तभी उन्हें प्रवेश दिया जा सकेगा। इससे पहले श्रीलंका में हुए सिलसिलेवार आत्मघाती हमलों के बाद इसी तरह का फैसला श्रीलंकाई सरकार ने भी लिया था, जिसका विरोध भी देखने को मिला था। ठीक वैसे ही ट्यूनिशिया सरकार के फैसले को एक खास सोच और विचारधारा वाले लोग धर्म के खिलाफ बताकर दुष्प्रचारित करेंगे वहीं गंदी राजनीति करने वाले यह कहने से भी नहीं चूकेंगे कि जब इस्लामिक देश में नकाब जरुरी नहीं है तो फिर अन्य गैर इस्लामिक देश में इसे क्योंकर ढोया जा रहा है। ऐसे तमाम लोगों को बतलाने की आवश्यकता है कि यह फैसला ट्यूनिशिया सरकार ने इसलिए लिया है क्योंकि 27 जून को दोहरा आत्मघाती बम विस्फोट हुआ था, जिसमें दो लोग मारे गए थे जबकि सात लोग घायल हुए थे। इस प्रकार इंसानी जिंदगी की सुरक्षा को अहम मानते हुए प्रधानमंत्री यूसुफ चाहेद ने नकाब प्रतिबंधित करने जैसे फैसले पर हस्ताक्षर किए। ट्यूनिशिया में ही सरकार के फैसले का विरोध शुरु हो गया है। सर्वप्रथम सरकार के इस प्रतिबंध को अस्थायी घोषित करने का अनुरोध मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ट्यूनीसियन लीग ने कर दिया है। लीग के अध्यक्ष जामेल मुसल्लम ने इस मांग के साथ ही जो कहा वह वाकई सधा हुआ और समझदारी वाला बयान रहा है। दरअसल उन्होंने अपने बयान में कहा है कि ‘हमें अपनी इच्छानुसार पोशाक पहनने की आजादी है, लेकिन आतंकी हमलों की आशंका के चलते यह निर्णय सरकार को लेना पड़ा है। इसलिए उम्मीद की जाती है कि यह प्रतिबंध अस्थायी ही होगा। गौरतलब है कि करीब सवा करोड़ आबादी वाले इस देश में 99 फीसदी लोग सुन्नी मुसलमान हैं, लेकिन कभी भी यहां से कट्टरता जैसी कोई बात नहीं उठी है। वहीं दूसरी तरफ सऊदी अरब में महिलाओं द्वारा नकाब का सोशल मीडिया पर विरोध करके पिछले साल ही हंगामा मचा दिया था। इस बात को मीडिया ने चटकारे लेते हुए बतलाया था कि सऊदी अरब की महिलाएं बुर्के का विरोध करते हुए कह रही हैं कि यदि उन पर यह जबरन थोपा गया तो वो इसके विरोध में इसे उलटा पहनेंगी। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि सार्वजनिक स्थलों में महिलाएं नकाब पहनने को बोझ मानती हैं और इसलिए बुर्का का विरोध किया जा रहा है। एक प्रकार से नकाब के विरोध में जहां तीखे स्वर उभरे वहीं उसके समर्थन में महिलाएं ही आगे आती हुई दिखाई दीं। जहां तक धर्म की बात है तो नकाब का जिक्र महिलाओं के लिए तो आया है, लेकिन मर्दों के लिए भी दिशा निर्देश मौजूद हैं, जिसके तहत पत्नी को छोड़कर किसी भी महिला को गौर से देखने तक की मनाही है, फिर इस तरह की बातें महज महिलाओं को केंद्र में रखकर ही क्यों की जाती रही हैं? इससे पुरुषवादी मानसिकता उजागर होती है। इसलिए नकाब को नारीशक्ति के लिए जरुरी या गैरजरुरी घोषित करने से पहले आदमियों को भी अपने स्वयं के गिरेवान में झांककर देख लेना चाहिए, कहीं उनके मन का चोर उन्हें ऐसा करने के लिए तो नहीं उक्सा रहा है।
(लेखक-डॉ हिदायत अहमद खान)