श्री बाबा औघड़नाथ मंदिर समिति की बैठक गुरुवार को मंदिर प्रांगण में हुई, जिसमें श्रावण मास में भक्तों के लिए तैयारियों पर चर्चा की गई। प्रत्येक सोमवार को फूल बंगला सजाया जाएगा। 16 जुलाई को चंद्र ग्रहण के चलते सूतक लगने पर सांय 4:30 बजे मंदिर के कपाट बंद होंगे और 17 जुलाई को सुबह 5:30 बजे खुलेंगे।
बैठक में अध्यक्ष डॉ. महेश बंसल ने बताया कि 17 जुलाई से श्रावण मास प्रारंभ हो रहा है। 30 जुलाई को महाशिवरात्रि है। श्रावण मास में इस बार 22 जुलाई, 29 जुलाई, 5 अगस्त, 12 अगस्त को चार सोमवार हैं। प्रथम सोमवार में विशाल भंडारा होने के कारण भक्तों की भीड़ रहेगी। शिवरात्रि के अलावा प्रत्येक सोमवार को भी मंदिर में भीड़ उमड़ेगी। प्रभु के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कठिनाई न हो, इसके लिए बेरिकेडिंग की व्यवस्था की जा रही है। श्रावण मास में मंदिर प्रात: 4:00 बजे से रात्रि 11:00 बजे तक खुला रहेगा। हर सोमवार को भव्य फूल बंगले की सजावट की जाएगी। यह फूल बंगला दर्शनीय होगा।
बताया कि 16 जुलाई को चंद्रगहण है। इसमें ग्रहण स्पर्श अर्धरात्रि पश्चात 1:31 बजे तक और मोक्ष काल अर्धरात्रि पश्चात 4:30 बजे तक रहेगा।
ग्रहण के कारण सूतक लग जाएंगे, इसलिए 16 जुलाई की शाम साढ़े चार बजे से से 17 जुलाई की सुबह साढ़े पांच बजे तक मंदिर के कपाट बंद रहेंगे। उपाध्यक्ष धीरेंद्र सिंघल, सुनील गोयल, उपमंत्री सुधीर अग्रवाल, कोषाध्यक्ष अतुल अग्रवाल, अनिल सिंघल, अमित अग्रवाल, अशोक चौधरी, सुधीर गुप्ता, राजेंद्र गुप्ता, रामजीवन ऐरन, ब्रजभूषण गुप्ता, महेंद्र गुप्ता, संजय बंसल, ज्ञानेंद्र अग्रवाल, पुलकित गुपता, अजय भार्गव, अमरीश अग्रवाल, रामनिवास अग्रवाल, मुकेश गुप्ता आदि उपस्थित रहे।
कैंट स्थित औघड़नाथ मंदिर के सत्संग भवन में श्रीराम कथा के छठे दिन भक्तों की भीड़ उमड़ी। राम सीता विवाह का मार्मिक वर्णन किया गया। रामचरित मानस की चौपाइयां और भजनों पर श्रद्धालु झूम उठे। संत अखिलदास महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि श्री राम गुरु भक्त हैं। गुरुकुल में भगवान राम ने गुरुजी की सेवा की और समस्त शिक्षा प्राप्त की। परमात्मा सभी के हैं और उससे कोई अलग नहीं कर सकता। अच्छे कार्य तुरंत कर डालना चाहिए, कल पर मत छोड़िये। चिंता समस्या का हल नहीं है। चिंतन करना चाहिए, अगर चिंता करनी है तो परमात्मा की करनी चाहिए कि परमात्मा मिलेगा या नहीं। जहां गुरु का निमंत्रण होता है, वहां शिष्यों को अलग से निमंत्रण की आवश्यकता नहीं है। ब्रह्म ही आपको सही चिंतन दे सकता है। जब भाव की पुष्टि होने लगती है, तब समर्पण होता है। सीता भक्ति का स्वरुप है। विरेंद्र सिवाया, महेश गिरि, अनिल त्यागी, मनोज, धर्मवीर, सीमा कुसुम आदि रहे।