धर्म कोई भी हो, लेकिन आस्थावान को अपने भाग्य पर उतना ही भरोसा होता है जितना कि जीवन और मरण में। वैसे भी मानव समाज में भाग्य को वो स्थान प्राप्त है जो कि किसी अन्य को हो नहीं सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अथक प्रयासों के बावजूद जो चीज या पद, प्रतिष्ठा नहीं मिल पाते हैं वो उज्जवल भाग्य के चलते चुटकियों में मिल जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि सब वस्तुओं की तुलना कर लें मगर अपने भाग्य की कभी भी किसी से तुलना नहीं करें। अधिकांक्षतया लोगों द्वारा अपने भाग्य की तुलना अन्य व्यक्तियों या यूं ही मजाक में किसी जानवर से करके व्यर्थ का तनाव मोल ले लिया जाता है। इसके साथ ही इसके लिए उस परमात्मा को ही सुझाव दिया जाता है कि उसे ऐसा न करते हुए ऐसा करना चाहिए था। भाग्य के लिए परमात्मा से शिकायत मत किया करो। यह समझ लो कि मानव कभी भी इतना समझदार नहीं हो सकता कि वह परमात्मा के इरादे समझ सकें। अगर उस ईश्वर ने आपकी झोली खाली रखी है तो यह सोचकर चिंतित मत होना कि आपकी झोली क्यों खाली है, बल्कि यह सोचना कि ईश्वर जरुर कुछ बेहतर देने वाला है। खाली झोली देख चिंता मत करना क्योंकि शायद हो सकता है कि भाग्यानुसार ईश्वर पहले से कुछ बेहतर उसमे डालना चाहता हो। इसे यूं समझें कि आपको अवसर मिला है कि आप दूसरों के भाग्य को देख और उसकी सराहना करने में समय लगाने की बजाय स्वयं अच्छे कार्य करते हुए अपने भाग्य को सुधारने में लग जाएं। अंतत: यह समझ लें कि परमात्मा ने भाग्य सभी के लिखे हैं, लेकिन उन्हें अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी स्वयं मानव के कंधों पर उसने डाल रखी है, जो यह समझ जाता है वह कड़ा परिश्रम करता रहता है और नासमझ भाग्य का रोना लेकर जिंदगी गुजार देते हैं।