(लेखक – ओमप्रकाश मेहता)
अब इसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की नाराजी दूर करने का प्रयास कहा जाए या अपने दल के चुनावी घोषणा-पत्र को मूर्तरूप देने का प्रयास किंतु यही वास्तविकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने अपने अतिविश्वस्त करीबी मित्र अमित शाह को गृहमंत्री का पद सिर्फ और सिर्फ कश्मीर पर अपना परचम फहराने की गरज से सौंपा है और अमित शाह ने भी कश्मीर पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में जी-जान लगा दी है, अमित शाह का मुख्य उद्देश्य कश्मीर से निष्कासित पण्डितों की कश्मीर वापसी ही है, इसकी सफलता के बाद धारा-370 व 35ए हटाने का काम हाथों में लिया जाएगा।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में साढ़े चार साल पहले हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को कश्मीर में एक भी सीट हासिल नही हो पाई थी, जम्मू क्षेत्र से भाजपा को मिली 28 सीटों के बलबूतें पर ही भाजपा ने पीडीपी यानी मेहबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन की सरकार बनाई थी, जो अल्पजीवी रही और इसी कारण अब कश्मीर में काफी लम्बे अर्से से राष्ट्रपति (राज्यपाल) शासन चल रहा है और एक सोची-समझी योजना के तहत लोकसभा चुनावों के साथ वहां राज्य विधानसभा के चुनाव नहीं करवाए गए थे। वह सोची-समझी योजना यह थी कि विधानसभा चुनावों के पहले कश्मीर से निष्कासित लाखों कश्मीरी पण्डितों की वापसी करा दी जाए, जिससे ये पण्डित भाजपा का साथ देकर पीडीपी व नेशनल कांफ्रेंस जैसे स्थापित दलों के सामने चुनौती खड़ी कर सके और वहां भाजपा का परचम फहरा सकें। इसी मकसद को ध्यान में रखते हुए, जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव नहीं करवा कर वहां राष्ट्रपति शासन की अवधि छः महीने के लिए बढ़ाई गई। अब प्राथमिकता के आधार पर आगामी दो-चार महीनों याने नवम्बर-दिसम्बर से पूर्व कश्मीरी निष्कासित पण्डितों की घर वापसी करा दी जाएगी और कश्मीर से धारा-370 व 35ए हटाने की तैयारी भी शुरू कर दी जाएगी, जिसका लाभ भाजपा दिसम्बर में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में उठा सकेगी। प्रधानमंत्री ने केवल ‘मिशन कश्मीर’ पूरा करने के लिए अमित शाह को गृहमंत्री का पद सौंपा और उन्होंने भी पद ग्रहण करते ही सबसे पहले जम्मू-कश्मीर की यात्रा कर वहां का जायजा लिया। अब प्रयास यह किया जा रहा है कि श्रीनगर में कश्मीरी पण्डितों की अलग से एक सर्व-सुविधायुक्त ‘टाॅऊनशिप’ तैयार कराई जाए और वहां उन्हें स्थापित किया जाए। राज्यपाल सतपाल मलिक ने इसकी पैरवी भी शुरू कर दी है।
गृहमंत्री अमित शाह इसके अलावा अन्य कश्मीरियों को भी आर्थिक तथा अन्य प्रलोभन दे रहे हैं, मसलन कश्मीरी घाटी में रहने वाली निराश्रित महिलाओं को मासिक पेंशन नहीं मिल पा रही थी, अब उनके खातों में नियमित रूप से पेंशन राशि पहुंचने लगी है, निराश्रित महिलाओं के साथ बुजुर्गों को भी वृद्धावस्था पेंशन बराबर पहुंचने लगी है। कश्मीर के ग्रामीण इलाकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कश्मीर के सरपंचों को सीधे सात सौ करोड़ की राशि पहुंचाई गई, जिससे ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में रूके हुए विकास कार्य पूरे किए जा सकें। गृृहमंत्री अमित शाह ने आम कश्मीरियों का दिल जीतने के लिए सत्तर साल में पहली बार कश्मीर में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरों गठित करने का फैसला लिया तथा भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों व बैंक अफसरों की सम्पत्ती की जब्ती की प्रक्रिया शुरू की, जिसकी कश्मीर में काफी तारीफ की जा रही है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कश्मीर की सत्तर लाख आबादी में 97 फीसदी मुस्लिम है, कश्मीर में नब्बे के दशक में हिन्दूओं की आबादी नौ फीसदी थी, जो अब नहीं के बराबर है, जो है, वे आतंकी निशाने पर है, पिछले तीन दशक में कश्मीर में पचास हजार से ज्यादा लोग आतंकी हमलों के शिकार हुए है। इसी कारण कई हिन्दू वहां से दूसरे राज्यों में पलायन भी कर चुके है। वही तीन दशक में तीन लाख से अधिक कश्मीरी हिन्दूओं को राज्य छोड़कर बाहर जाने को मजबूर किया गया, इन्हें ही कश्मीरी पण्डित कहा जाता है।
कुल मिलाकर मोदी सरकार के पूरे प्रयास कश्मीर को प्रगति की मुख्य धारा से जोड़ने के है, वैसे जम्मू और लद्दाख सहित इस राज्य में 22 जिलें है, जबकि कश्मीर घाटी केवल साढ़े तीन जिलों तक ही सिमटी है। केन्द्र सरकार की सोच है कि पूरे 22 जिलों का विकास कर साढ़े तीन जिलों के नेताओं की दादागिरी खत्म की जाए और भविष्य में कश्मीर के बारे में जो भी फैसले लिए जाए, वे पूरे 22 जिलों की सहमति से हो, सरकार की सोच है कि यदि ऐसा हो गया तो धारा-370 व 35ए हटाने जैसा फैसला भी मूर्तरूप ले सकता है और पूरे जम्मू-कश्मीर में खुशहाली के साथ भाजपा का ध्वज फहराया जा सकता है।
सरकार की सोच बहुत ऊँची है और समय केवल चार-पांच माह ही है। इसलिए जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को प्राथमिकता की सूची में सबसे ऊपर रख उसे मूर्तरूप देने का भरसक प्रयास किया जा रहा है, यदि इसमें भाजपा सरकार को सफलता मिल गई तो जम्मू-कश्मीर पर भाजपा की फतह हो सकती है और उसकी धाक का असर देश के अन्य गैर भाजपाई राज्यों पर भी पड़ सकता है।