इंदिरा नगर पुलिस ने 16 वी मोहर्रम पर्व निकलने वाले जुलूस को सकुशल संपन्न कराया
गया लखनऊ थाना इंदिरा नगर क्षेत्र से निकलने वाले १६वी मोहर्रम ताजिया के जुलूस को एसएसपी कलानिधि नैथानी के निर्देश पर थाना प्रभारी संतोष कुमार कुशवाहा तकरोही चौकी प्रभारी भानु प्रताप सिंह के नेतृत्व में पुलिस टीम ने सकुशल संपन्न कराया गया सुरक्षा व्यवस्था को अधिक चाक-चौबंद करते हुए थाना प्रभारी संतोष कुमार कुशवाहा चौकी प्रभारी भानु प्रताप सिंह तकरोही मायावती अमराई गांव रसूलपुर जराहरा चांदन कस्बा मे इंदिरा नगर फोर्स ने सोलवीं मोहर्रम के जुलूस को सकुशल कराया
एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी क्राइम दिनेश कुमार पुरी, सीओ गाजीपुर दीपक कुमार और सीओ अलीगंज स्वतंत्र कुमार सिंह के नेतृत्व में जुलूस वाले रास्ते पर सुरक्षा को चाकचौबंद किया गया। बॉडी वार्न कैमरों के साथ चप्पे चप्पे की निगरानी की गई। जुलूस के बाद यातायात को फिर से शुरू कर दिया। केजीएमयू आने वाली एंबुलेंस को कोई बाधा न हो इसके लिए एक लाइन को खाली रखा गया था। ड्रोन से घरों की छतों से दूर दूर तक नजर रखी गई। वहीं शहर के कई इलाकों में भी शांति के बीच मुहर्रम का जुलूस निकाला गया।
जमीन से आसमान तक पहरा
वहीं, जुलूस को लेकर राजधानी में पुलिस हाई अलर्ट पर है। एसएसपी कलानिधी नैथानी खुद सुरक्षा व्यवस्था का जायजा ले रहे हैं। पीएसी से लेकर थानों की पुलिस सुरक्षा मोर्चा संभाले है। जुलूस पर जमीन से आसमान तक पुलिस का पहरा है।
क्यों मनाते हैं मुहर्रम?
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था। यजीद खुद को खलीफा मानता था, लेकिन अल्लाह पर उसका कोई विश्वास नहीं था। वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं। लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्होंने यजीद के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया था। यह जंग इराक के प्रमुख शहर कर्बला में लड़ी गई थी। यजीद अपने सैन्य बल के दम पर हजरत इमाम हुसैन और उनके काफिले पर जुल्म कर रहा था। उस काफिले में उनके परिवार सहित कुल 72 लोग शामिल थे। जिसमें महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे भी थे। यजीद ने छोटे-छोटे बच्चे सहित सबके लिए पानी पर पहरा बैठा दिया था। भूख-प्यास के बीच जारी युद्ध में हजरत इमाम हुसैन ने प्राणों की बलि देना बेहतर समझा, लेकिन यजीद के आगे समर्पण करने से मना कर दिया। महीने की 10 वीं तारीख को पूरा काफिला शहीद हो जाता है। चलन में जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था।
मुहर्रम का क्या महत्व है?
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, मुहर्रम मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है। मुहर्रम के महीने में मुसलमान शोक मनाते हैं और अपनी हर खुशी का त्याग कर देते हैं। हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखना था। यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया। मुहर्रम कोई त्योहार नहीं बल्कि यह वह दिन है जो अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है।