(लेखक- डॉ. अरविन्द पी जैन )
एक, कब्रिस्तान में जो कब्र खोदने और दफनाने का काम करता था जब वह मरणसन्न हुआ तो अपने लड़के से कहा बेटा धंधे में बरकत करना। पिता के मरने के बाद लड़के ने जब काम सम्हाला तो उसने दफनाए गए शवों को खोद कर शवों का कफ़न निकाल कर शव गड्ढे से बाहर निकाल देता था। इससे मरने वालों के परिवार जन बहुत दुखी। वो सब कहने लगे की इसका बाप तो सिर्फ गढ्ढा खोदता था और लड़के ने कफ़न चुराना भी शुरू कर दिया, तो कहने लगे बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मिया शुभान- अल्लाह।
नेतागिरी एक प्रकार का कीड़ा होता हैं जो सब प्रकार के रोगों का समूह होता हैं पर उससे उसको रोग से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती हैं जिसे प्रतिरोधात्मक शक्ति या इम्युनिटी कहते हैं। जैसे अफसर की औलाद अफसर से बड़ी होती हैं और अफसर की बीबी अफसर की बॉस होती हैं। एक बार एक साहब से एक व्यक्ति ने पूछा साहब आप ऑफिस तो शेर होते हैं पर घर में ?तब अफसर बोलै घर में भी शेर रहता हुआ पर दुर्गा जी सवार हो जाती हैं। नेता बनने के लिए कुछ योग्यता पाना जरुरी होता हैं। पहली बात वह घर से ही नेता गिरी शुरू करता हैं, यदि घर में सबसे बड़ा चिरंजीव हैं तो कोई परेशानी नहीं और अंतिम हैं तो भी कोई परेशानी नहीं। ज्येष्ठ भ्राता होने पर दादागिरी करने का अधिकार अपने आप मिल जाता हैं और कनिष्ठ हैं तो क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पाद।
ये शुभ लक्षण होते हैं उसके बाद स्कूल कॉलेज में चुनाव लड़ना, गुटबंदी कर गुंडा गर्दी करना, कोई राजनीतिक पार्टी जो सत्ता में हो उससे जुड़ना या विरोधी हो तो आंदोलन करना, उसके बाद किसी का मुंह काला करना, किसी अफसर को मारना या जूतों से पिटाई करना, जिससे मोहल्ले और शहर में सिक्का जमने लगता हैं और फिर स्थानीय नेताओं के संरक्षण में प्रदेश स्तर तक सेंध लगाकर घुसना और फिर वहां स्थापित होना। एक बार स्थापित होने के बाद आपकी छवि उग्रवादी हो या बहुत भीड़ इकट्ठी करने वाली हो। इसके साथ गुंडा लुच्चा लफंगा मारपीट, हत्या, जमीन हथियाना या कब्ज़ा करना, अवैध कुछ भी काम करना ये मुख्य लक्षण होना चाहिए।
उसके बाद पार्टी के माध्यम से चुनावी टिकिट लेना या पहली बार अपने ख़ास को जिताना, उसके माध्यम से ठेका लेना जिससे आर्थिक सम्पन्नता आना। उसके बाद धीरे धीरे पार्टी में अंगद जैसे पाँव ज़माना। एक बार चमड़े का सिक्का चल गया तब विधायक, मंत्री, मुख्य मंत्री बनना सामान्य बात हैं और अधिक हुआ तो पार्टी के संघठन में घुस कर सब पर नियंत्रण करना। ये सब गुण आ गए तो बात पक्की। इतना समय व्यतीत करने के बाद तो कोई न कोई औलाद योग्य हो ही जाती हैं। ऐसा नहीं की पूर्व और वर्तमान में प्रधान मंत्री अपनी औलाद को आगे बढ़ाने में विवश हैं। क्या करे उनको कोई औलाद नहीं थी या हैं। ये उनका दोष नहीं हैं।
अभी तत्काल में एक प्रकरण ने बहुत ज़ोर पकड़ा हैं की बड़े राष्ट्रीय स्तर के नेता के सुपुत्र ने जनहित में कार्य करते हुए एक कर्मचारी को बेट से खुले आम मारा और सौभाग्य से उसका वीडियो बन गया और सबूत मिलने से और प्रदेश में उनके विरोधी की सरकार होने से न्यायलय ने १५ दिन की रिमांड पर भेज दिया। हो सकता हो यह उनकी पहली घटना हो जिस कारण अनुभवहीन होने से पकड़ा गया। पर ऐसा नहीं होगा, पहले भी किये होंगे। कभी कभी पुलिस १० पैसे के दस सिक्के से एक रूपया बनाते हैं। पर यह उनके लिए कोई नयी बात नहीं हैं। विधायक पुत्र ने नगर निगम के अधिकारी को पीटा पर उनके पूज्य पिता ने तो इंदौर में एक ए.एस.पी. को तो जूतों से पीटा था।
ये नेताओं के संस्कार होते ही हैं और फिर सांप का बच्चा सपोला ही होगा। इससे उनकी वरिष्ठता मानी जाएँगी और योग्यता में श्रीवृद्धि होंगी। और वो जग में नाम करेंगे रोशन। वैसे ऐसे योग्य और गुणवान लोगों की पार्टी में जरुरत होती हैं और ये परम्परागत गुण होते हैं, इसी प्रकार के कृत्य केवल विपक्ष के ही नहीं सत्ताधारी विधायक, मंत्री भी करते हैं जैसे नायब तहसीलदार के डायस में बैठ कर निलंबन किया तो ग्यारसपुर में पूर्व विधायक ने अधिकारी से कहा यहाँ रह नहीं पाओगे।
वैसे राजशाही ख़तम हो गयी हैं पर अब दूसरा रूप सामने आ गया हैं विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि जैसे लगभग ६-७हज़ार विधायकों और सांसदों के अलावा पूर्व और हारे हुए मिलकर लाखों में हैं और उनके सामने आई ए स, आई पी एस आदि वरिष्ठतम पानी भरते हैं तब अदना कर्मचारियों की क्या बिसात। और जनता तो जब तक वोट नहीं देती तब तक भगवान् और वोट देने के बाद ये भगवान् हो जाते हैं, वैसे हमारे देश में ऐसे ही विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री होना ही चाहिए जिससे कर्मचारी नियंत्रित रहते हैं और कहते भी हैं पहले आवेदन, निवेदन और बाद में दनादन।