कभी कभी किसी का संस्मरण भी इंसान को बेहतर राह दिखाने का काम कर जाता है। ऐसा ही एक संस्मरण अमेरिका के एक बड़े राजनेता ने लिखा, जिसमें उन्होंने बताया कि ‘लुहार की दुकान के सामने से एक दिन गुजर रहा था। उसका दूसरा साथी कहीं चला गया था। अकेला ही धौंकनी धौंकता और लोहा पीटता जा रहा था। मुझे अजीब लगा, सो दुकान के सामने रुक कर देखने लगा। लुहार ने अपनी कारिस्तानी दिखायी उसने छूटते ही किसी बड़े खानदान से अपने आपको सम्बन्धित और अपनी कक्षा का मेधावी छात्र बताया, साथ ही भविष्य में कोई बड़ा आदमी बनने की संभावना भी व्यक्त कर दी। उसके इस कथन से मेरे मन में उसके प्रति सद्भावना जाग गई। उसने कहा कि ‘यदि और भी कुछ सुनना और देखना चाहते हो तो मेरे पास बैठो और इस कला की जानकारी हासिल कर लो, जिसने मुझे मालदार बना दिया है।’ लुहार की बात से बालक प्रभावित हुआ और वह दुकान पर जा बैठा। उसने धौंकनी थमा दी और कहा देखो इसे चलाना भी कितना मजेदार है। मैं उसकी बातों में आ गया और देर तक उसकी धोंकनी चलाता रहा। जब भी उठने का मन करता तभी वह फिर अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से मुझे अपने जाल में फँसा लेता। इस तरह दोपहर हो गयी। हाथ में दर्द भी होने लगा। अंतत: मैं वहां से उठा और चल पड़ा। इसके बाद स्कूल पहुँचा तो मेरी गैरहाजिरी लग गयी थी। उस दिन परीक्षा भी थी। मास्टर ने बुरी तरह पीटा और मुझे फेल भी कर दिया। धौंकनी धौंकने का दर्द तो बाँहों में था ही मास्टर की पिटाई से वह और भी अधिक बढ़ गया। बुखार आया और चारपाई पर पड़ा पछताता रहा। इसके बाद मैंने जीवन भर याद रखा कि चापलूसी बातों में कतई नहीं फँसना है, यह सबसे बड़ी मूर्खता है।