गुर्दों की बीमारियों के अधिकतर मामलों में शुरुआत में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, इसलिए सावधानी बरतने की जरुरत है। जब गुर्दों की बीमारियों का रोग एडवांस स्टेज क्रॉनिक किडनी डिसीज (सीकेडी) तक पहुंचता है तब तक गुर्दे 96 प्रतिशत तक खराब हो जाते हैं। इसलिए थोड़ी भी परेशानी हो, तो डॉक्टर को दिखाएं। सामान्य रक्त और यूरिन टेस्ट से गुर्दों की बीमारियों का पता चल सकता है।
किडनी रोगों का इलाज बहुत आसान और कम खर्चीला होता है। इसमें दो प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं। सामान्य यूरिन टेस्ट के द्वारा यूरिन में प्रोटीन की मात्रा की जांच की जाती है। अगर यूरिन में प्रोटीन की मात्रा कम है, तो यह किडनी रोग का संकेत हो सकता है। वहीं जीएफआर (ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट) का पता लगाने के सिंपल ब्लड टेस्ट, आपका जीआरएफ नंबर बताता है कि आपकी किडनी कितनी बेहतर तरीके से काम कर रही है।
गुर्दों की बीमारियों के दो सबसे प्रमुख कारण, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप है। इनके कारण दोनों गुर्दों में मौजूद छोटी-छोटी रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे गुर्दों को नुकसान पहुंचता है। कई और स्थितियां हैं, जो गुर्दों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इनमें सम्मिलित हैं हृदय रोग, ग्लोमेरूलोनेफ्राइटिस (एक रोग, जिस कारण किडनियों में सूजन आ जाती है) और जन्मजात पॉली सिस्टिक किडनी डिसीज, जिससे किडनी में सिस्ट बन जाते हैं।
गुर्दों की बीमारियों से पीड़ित सभी व्यक्तियों को डायलिसिस की आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रारंभिक स्तर पर इसे व्यायाम, खानपान और दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। इस तरह से अधिकतर लोग इन रोगों को गंभीर होने से बचा सकते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि ठीक समय पर गुर्दों के रोगों का पता लगाया जाए और उनका उपचार किया जाए। डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता तब होती है, जब दोनो किडनी काम करना बंद कर दे।
अगर एक किडनी ठीक प्रकार से काम करे, तो रक्त में यूरिया का स्तर नहीं बढ़ेगा।
गुर्दों को स्वस्थ्य इस प्रकार रखें। पोषक भोजन का सेवन करें, नियमित रूप से व्यायाम करें, रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित रखें, अपना वजन ठीक रखें और पेन किलर का अधिक इस्तेमाल न करें। ये सभी आदतें आपके गुर्दों को स्वस्थ्य रखेंगी और आपको गुर्दों की बीमारियों की चपेट में आने से बचाएंगी।