(लेखक-विवेक कुमार पाठक )
ग्वालियर में जनभागीदारी से जरुरतमंद बच्चों को स्टेशनरी उपलब्ध कराने के लिए सार्थक प्रयास हुआ है। ग्वालियर दक्षिण से पहली दफा चुने गए युवा विधायक प्रवीण पाठक ने इसके लिए अपने विधानसभा क्षेत्र में एक विधायक स्टेशनरी बैंक की शुरुआत की है। इस बैंक से उन बच्चों को किताबें कॉपियां मिलना शुरु हो गयीं हैं जिनके माता पिता आर्थिक अभाव में बच्चों की पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा पा रहे हैं। जनभागीदारी से बच्चों का बस्ता सजाने की ये अभिनव शुरुआत कही जा सकती है।
ऐसे दौर में जब सरकार का भारी बजट और सिस्टम गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षा देने दिलाने में संघर्ष कर रहा हो तो समाज से सहयोग की अपेक्षा की जाती है। जीहां सरकार से बड़ी ताकत जनता में है। वह छोटी छोटी भागीदारी करके सामुदायिक विकास की पटकथा लिख सकती है। आज देश और समाज में अपेक्षा की जा रही है कि हम सब अपने आसपास की समस्याओं के समाधान में कुछ न कुछ भूमिका जरुर निभाएं। सरकारी स्कूलों के बच्चों का भविष्य भी केवल सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। जनभागीदारी को बढ़ाने हम सबके बीच में से ही लोगों को प्रोत्साहन के लिए आगे आना होगा। ग्वालियर में विधायक स्टेशनरी बैंक की शुरुआत एक सार्थक कदम है। इस प्रयास के लिए ग्वालियर दक्षिण के युवा विधायक प्रवीण पाठक निश्चित ही बधाई के पात्र हैं। उन्होंने सरकारी प्रयासों के समानांतर जनभागीदारी से गरीब बच्चों की मदद के लिए अभिनव शुरुआत की है। उन्होंने विभिन्न संगठनों, समितियों एवं आमजनों से आग्रह किया है कि उन्हें किसी भी कार्यक्रम में बुलाया जाए तो स्वागत व आभार के लिए आगे से फूलमालाएं, बुके और स्मृति चिन्ह न दिए जाएं। स्वागकर्ता उन्हें इसके बदले उसी राशि की स्टेशनरी विधायक स्टेशनरी बैंक में निशुल्क बांटने के लिए दे दें। ये किताबें कॉपियां और पेन पेंसिल जरुरतमंद बच्चों के जीवन में शिक्षा का प्रकाश लाने का जरिया बनेंगी तो अभावों से जूझते गरीब मां बाप को बच्चों की पढ़ाई में सहारा मिल सकेगा। यह निशुल्क स्टेशनरी बैंक गजराराजा स्कूल में समारोहपूर्वक प्रारंभ हो चुका है। शुभारंभ अवसर पर विधायक पाठक ने बैंक से स्टेशनरी बांटने के लिए अपने मासिक वेतन से उसे प्रतिमाह आधी राशि देने की घोषणा की। इस अवसर पर नगर के कई गणमान्यजनों जनप्रतिनिधियों एवं आमजनों ने बच्चों की मदद के लिए अपने अपने स्तर पर सहयोग का वादा किया।
ग्वालियर में सरकारी स्कूल के बच्चों के लिए जनभागीदारी के जरिए इस प्रयास का विभिन्न मत मतांतरों से मुक्त होकर न केवल स्वागत किया जाना चाहिए बल्कि इसमें हर वर्ग से जुड़े व्यक्ति को अपने अपने स्तर पर मदद करना चाहिए। हम देश प्रदेश और समाज में बदलाव चाहते हैं तो हमें हर बार सरकार की ओर ही नहीं देखना चाहिए। बेशक शिक्षा स्वास्थ्य सरकार की जिम्मेदारी है मगर उसके क्रियान्वयन में शत प्रतिशत सफलता अब भी दूर की कौड़ी है। सरकार गरीब बच्चों के लिए अभी भवन निर्माण, शिक्षक भर्ती, गणवेश आदि के लिए ही बजट की व्यवस्था में लगी हुई है। ऐसे में तमाम सरकारी स्कूलों के बच्चे आज भी नए बस्ते और उसमें रंग बिरंगी नयी किताबें और उजली कॉपियों का सपनों में इंतजार करते हैं। मंहगाई के इस दौर में गरीब परिवारों के लिए दो जून की रोटी का संघर्ष ही इतना बड़ा है कि बच्चों के लिए नया बस्ता सज ही नहीं पाता। ऐसे में हम सब कुछ रुपयों की स्टेशनरी बांटकर हजारों बच्चों के स्कूली जीवन को उल्लासमय बना सकते हैं। विधायक प्रवीण पाठक ने फूलमालाओं और स्मृतिचिन्ह देने वालों से इन्हीं बच्चों की खातिर निशुल्क स्टेशनरी मांगकर अच्छी शुरुआत की है। ये थोड़ी सी स्टेशनरी हर परिवार उन अनजाने बच्चों के लिए दान कर सकता है। हम अपने जन्मदिन और तमाम स्मृति दिवसों पर इस तरह का शिक्षा दान इन बच्चों के लिए कर सकते हैं। इस तरह के प्रयास अब से पहले भी हो रहे थे और आज भी विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा कहीं न कहीं किसी अवसर पर किए भी जाते होंगे। इसी भलाई का विस्तार करते हुए हर कोई किसी न किसी गरीब बच्चे को कॉपी पेन पेंसिल का तोहफा दे तो जनभागीदारी से बहुत से बच्चों के शैक्षिक जीवन में मुस्कुराहट घोली जा सकती है। विधायक स्टेशनरी बैंक इस तरह के सार्वजनिक प्रयासों का सार्थक मंच बन सकता है इसलिए उसके जरिए मदद के आकांक्षियों को खुलकर आगे आना चाहिए।