हम भारतवासी सदैव से ही स्वतंत्रता के प्रेमी और उपासक रहे है इसलिए जब जब भी हमारी स्वाधीनता को अपह्त करने के प्रयत्न हुए हमने उसका प्रतिकार किया है, अनेकबार विदेशी शक्तियों ने हमें पराधीन बनाने की कोशिश की किन्तु हमारे पूर्वजो ने उनके विरूद्ध सतत संघर्ष किया और अंतत: विजयी हुए।
स्वतंत्रता की महिमा से मंडित हमारे देश के लोकतांत्रिक इतिहास से हमारी आजादी के हरण का एक काला अध्याय दर्ज है किन्तु उसके साथ ही दूसरी आजादी की हमारी संघर्ष गाथा भी जुडी है, वह हमारे आजादी से जीने के संस्कार का एक ज्वलंत उदाहरण है, पंरतु वर्तमान की नई पीढ़ी को लोकतंत्र पर आई इस अमावस्या की शायद ही कोई जानकारी होंगी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में 25 जून 1975 में एक ऐसा भी अवसर आया जब तक सत्तासीन व्यक्ति ने जिनका उनके अपने भ्रष्टाचार के कारण चुनाव परिणाम इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया, अपनी सत्ता पिपासा को पूरा करने के लिये देशवासियों के सारे लोकतांत्रिक अधिकारों को तथा सारी संवैधानिक मर्यादाओं को समाप्त कर संपूर्ण देश को आपातकाल की बेड़ी में जकड़ दिया। आपातकाल लगाने के लिये आवश्यक सारे संवैधानिक प्रावधानों को दरकिनार करके यह घोषणा की गई थी। प्रावधानों के तहत आधे से अधिक प्रांत जब मांग करें, नोट भेजें कि कानून व्यवस्था संकट में है और केन्द्रीय कैबिनेट सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करे तब आपातकाल लगता है।
किंतु इंदिरा जी और उनके निकटस्थी को भय सता रहा था कि वे कहीं सत्ता से बेदखल ना हो जाये इसलिये सारे कानून हाथ में लेकर अपनी मनमर्जी से वह किया जो कतयी कानून संगत नहीं था वह तो जब आम निर्वाचन की घोषणा हुई तो उनकी अनेक साजिशे उजागर हुई निर्वान प्रक्रिया के आरंभ होते होते इंदिरा जी के मंत्रीमंडल के वरिष्ठ मंत्री बाबू जगजीवन राम ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस छोड़ दी उस समय उन्होंने खुलासा किया कि देश पर आपातकाल थौपने संबंधी प्रस्ताव कैबिनेट में कभी आया ही नही, उसे सिर्फ सूचित किया गया उनके शब्द में केबीनेट वॉस टोल्ड नॉट कन्सल्टेड और इसके विपरीत फखरूद्दीन अली महोदय को लिखित सूचना दी गयी कि वह प्रस्ताव कैबिनेट द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया था इस प्रकार सारे संवैधानिक प्रावधानो का उल्लंघन करते हुए बिना कैबिनेट के प्रस्ताव के पूरे देश पर तानाशाही का जो तांडव थोप दिया गया उसका नाम था आपातकाल ।
कोई अपील नही, कोई न्यायिक व्यवस्था नहीं, न्यायालयों के सारे अधिकार समाप्त कर दिये गये और लाखो निरपराध लोगो की धड़ाधड़ गिरफ्तारी हुई तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण सहित सभी विरोधी दलो के नेता जिसमें अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आड़वाणी, जार्ज फर्नाडीज, कांग्रेस के भी नेता 250 से अधिक पत्रकार जेलो में डाल दिये गये। निरपराध नागरिको के साथ हिंसा का एक ऐसा ताडव देश ने पहले कभी नही देखा था।
न्यायपालिका समाप्त कर दी गई सुप्रीम कोर्ट मे तीन जजो को सुपरसीड करके अपने चुनाव को वैध करा लिया गया संपूर्ण देश मे हाकार जेल के भीतर अकेले म.प्र. में 100 से अधिक लोकतंत्र प्रेमियो की असमय मृत्यु हुई। 110806 राजनैतिक और समाजिक नागरिको को मीसा/डीआईआर मे बिना मुकद्दमा चलाये जेलो मे निरूद्ध किया गया। इस इतिहास को जानना और परखना लोकतंत्र मे विश्वास लोकतंत्र मे विश्वास रखने वाले सभी के लिये आवश्यक है। नयी पीढी को भी इसे जानने की जरूरत है। जिसकी प्रेरणा से भविष्य मे लोकतंत्र को अक्षुण्ण रखा जा सके। देश हित मे यह बहुत आवश्यक है, ताकि अभिव्यक्ति की आजादी फिर कभी बाधिक न हो पाये। 25 एवं 26 जून 2006 को करेली मे दीवसीय का आयोजन किया था। जिसमे मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ के भी कुछ लोकतंत्र सेनानी शामिल हुये थे। तब लोकतंत्र सेनानी संघ को एक राज्यस्तरीय संगठन बना दिया गया था। 26 जून 2015 को भोपाल मे आयोजित सम्मेलन मे इसे अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया गया । आज इस संगठन का परिपूर्ण आकार सभी के सामने है। वह इसके केन्द्रीय पदाधिकारियो के निंरतर प्रवास और प्रयास का परिणाम है। आज कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक के लोकतंत्र सेनानी संगठित हो चुके है। लगभग सभी वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी मे आ चुके, इन सेनानियो के उत्साह मे आज भी कोई कमी नही आयी है। देश हित मे कुछ भी कर गुजरने को आज भी ये सभी तत्पर है । इसलिये सम्पर्क होते ही हर प्रांन्त मे प्रांन्तीय संगठन खड़ा हो गया, जिनके प्रांतीय सम्मेलन भी आयोजित हो रहै है।
इन सेनानियो के त्याग और तपस्या को सम्मानित करने का अर्थ अपने गौरवशाली इतिहास को सम्मानित करना है । जो लोग इतिहास को भुलाने के लिये अमादा थे उन्हे आज सम्पूर्ण देश नकार चुका है। जिन्होने इसके महत्व को समझा ऐसे कईS प्रान्त के माननीय मुख्यमंत्रीगण लोकतंत्र सेनानियो को मानधन सहित चिकित्सा, यातायात आदि की सुविधा मुहैया करके लोकतंत्र के प्रति अपने श्रद्धा भाव का उदाहरण प्रस्तुत कर रहै है । पिछले एक वर्ष मे हमारे संगठन के प्रयास और संबधित सरकारो के समर्थन से जिन प्रान्तो मे यह योजना पहली बार लागू हुई वह है। उत्तराखंड और महाराष्ट्र। उत्तरप्रदेश मे नयी सुविधाओ के साथ यह नये रूप मे लागू हुई है। असम मे इसे लागू करने के लिये आश्वसन मिल चुका है। आवश्यक प्रक्रिया से गुजरने के बाद घोषणा होने की संभावना है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा दी जा रही वित्तीय सुविधाओं पर अस्थायी रोक लगा दी है। मैं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को आगाह करना चाहता हू कि वे इतिहास से सबक ले तथा तानाशाही का मार्ग छोडकर वित्तीय सुविधाओं पर लगाई अस्थायी पावंदी को समाप्त कर आपातकाल के विरूद्ध संघर्ष करने वाले योद्धाओं को सम्मानित करे, अन्यथा आंदोलन का सामना करने के लिये तैयार रहे।
आपातकाल की समाप्ति के पश्चात् आई तत्कालीन केन्द्र सरकार ने यह अनुभव किया था कि यह देश का दूसरा स्वतंत्रता संग्राम है जिसने देश के लोकतंत्र को उसकी बेड़ियॉ तोडकर कारागार से मुक्त किया। इस गौरवशाली संघर्ष की महिमा को भावी पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करने की उनकी मंशा जरूर रही होगी क्योंकि वे स्वयं इसके सेनापति व मार्गदर्शक थे, पंरतु दुर्भाग्य से वे अपना कार्यकाल पूरा नही कर पाए आज इतने वर्षो के बाद उसी संघर्ष से निकले, लोकतंत्र सेनानी अच्छी संख्या मे केन्द्र में सत्तासीन है। हमें उम्मीद थी कि सरकार आते ही स्वयं इस पर अवश्य ध्यान देगी लेकिन ऐसा नही हो सका, जनता जनार्दन के आशीर्वाद से केन्द्र में श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनी है। इसमें देश के लोकतंत्र सेनानियों की भी महती भूमिका रही है हम आशान्वित है ।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहला महासंग्राम था। जिसमें संपूर्ण देश ने अपनी भूमिका निभाई, परंतु कैसा दुर्भाग्य नई पीढ़ी से इस इतिहास को छुपाकर रखा गया। इस संघर्ष गाथा को बच्चों के पाठयक्रम में शामिल करने की आवश्यकता से हमने सरकार को दृढतापूर्वक अवगत कराया है। हमें विश्वास है कि शीघ्र ही बच्चो को इसकी जानकारी उपलब्ध हो जाएगी। तत्कालीन केन्द्र सरकार ने ही लोकतंत्र को कलंकित किया था अत: आज की केन्द्र सरकार का यह दायित्व बनता है कि लोकतंत्र पर लगे उस कलंक को मिटाने वाले लोकतंत्र सेनानियों को स्वतंत्रता सेनानियों का दर्जा देकर इतिहास के साथ इस निमित्त हमें सरकार के प्रभावशाली मंत्रियों का समर्थन मिल रहा है इसे निर्णायक स्तर तक पहुचाने के लिये संगठन की ओर से निरंतर प्रयास जारी है। यह सब किय जाना इसलिये भी आवश्यक है कि जिससे इस संग्राम से वर्तमान तथा आगे आने वाली पीढिया स्वाधीन जीने के लिये कोई भी मूल्य चुकाने की सतत् प्रेरणा ग्रहण कर सके और दूसरी ओर शासन प्रशासन में बैठे लोगो की शक्ति और सामर्थ का भी विस्मरण न हो।
हम तो केन्द्र से बस इतना निवेदन कर सकते है कि जिस संघर्ष की सीढी चढकर आज आप आसमान की ऊंचाई को छू रहे है उस सीढी को उस इतिहास को महत्व दे और उन इतिहास पुरूषो को सम्मानित करे। पिछले 44 साल में हम लगभग 70 हजार लोकतंत्र सेनानियों को हम खो चुके है। रोज देशभर से जिस प्रकार के शोक समाचार मिल रहे है उससे लगता है कि अगले 10 साल में इनकी प्रजाति विलुप्ति की कगार तक पहुच जाएगी। अत: ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय को और अधिक टाला नही जाना चाहिए ।
(लेखक- राज्यसभा सदस्य एवं आपातकाल योद्धाओं के अ.भा.संगठन लोकतंत्र सेनानी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष है)
(लेखक – कैलाश सोनी)