अनुराग नगर में राष्ट्रसंत आचार्य रत्नसुंदर के ‘उत्साह ही उत्थान का मूल है’ पर प्रेरक आशीर्वचन ::
इन्दौर। दुख और चिंता मनुष्य के ऐसे शत्रु हैं जो एक बार मन में घुस गए तो पैर जमा कर ही बैठ जाते हैं। बिना समस्या के कोई जीवन हो ही नहीं सकता लेकिन समस्याओं के बीच भी जीने को हौंसला अपनी मुस्कराहट के साथ बनाए रखना महत्वपूर्ण हैं। पुण्य की तरह पाप का भी उदय होता है। मनुष्य के पास ऊर्जा बहुत है, लेकिन हम उसे बाहर नहीं निकाल पाते। उत्साह की ताकत ही अंदर की ऊर्जा को बाहर निकालती है। ऊर्जा कहीं बाहर से नहीं, हमारे अंदर से ही मिलती है। जंगल में गिरे हाथी को खड़ा करने कोई नहीं आता, उसे स्वयं ही उठना पड़ता है। पानी पैदा नहीं, प्रकट होता है। पत्थर हटाने पर अंदर पड़ा पानी प्रकट हो जाता है इसी तरह हमारे अंदर की ऊर्जा को प्रकट करने के लिए भी दुख और चिंता के पत्थर हटा देंगे तो ऊर्जा रूपी पानी का निर्झर बह निकलेगा। जीवन को उत्साह से भरपूर बनाने के लिए अपनी ऊर्जा को बढ़ाएं, अपने कौशल को बाहर लाएं, व्यर्थ की चिंताओं की अनदेखी करें और सफलताओं को न्यौता दें।
ये प्रेरक विचार हैं राष्ट्र संत, पद्मविभूषण प.पू. आचार्यदेव रत्नसुंदर सूरीश्वर म.सा. के, जो उन्होने आजसुबह अनुराग नगर जैन श्रीसंघ के तत्वावधान में मुनि सुव्रत स्वामी जैन श्वेतांबर तपागच्छ मंदिर पर परिवर्तन प्रवचनमाला के अंतर्गत ‘उत्साह ही उत्थान का मूल है’ विषय पर धर्मसभा में व्यक्त किए। प्रारंभ में मंदिर ट्रस्ट की ओर से हिम्मत भाई शाह, अशोक भाई शाह, डॉ. जयंत डोसाी, हेमंत डोसी, कल्पक गांधी आदि ने आचार्यश्री एवं साधु-साध्वी भगवंतों की अगवानी की। आयोजन से जुड़े कल्पक गांधी ने बताया कि आचार्य रत्नसुंदर म.सा. बुधवार 26 जून एवं गुरूवार 27 जून को तिलक नगर में चंदाप्रभु मांगलिक भवन पर प्रवचन देंगे। बुधवार को ‘कुछ नया करो‘ एवं गुरूवार को ‘कुछ अच्छा करो‘ विषय पर सुबह 9 से 10 बजे तक प्रवचन होंगे।
आचार्यश्री ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में किसी को भी सौ प्रतिशत सफलता नहीं मिलती है। असफलता से निराश हो कर हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना नहीं छोड़ सकते। जैसे कोई किताब पढ़ते हुए यदि किसी पृष्ठ से मन उचट जाए तो पूरी किताब बंद नहीं की जाती उसी तरह जीवन में यदि किसी मामले में सफलता नहीं भी मिले तो उसके लिए हमारे प्रयास और पुरूषार्थ बंद नहीं होना चाहिए। हमारी कमजोरियों को खत्म करने की ताकत उत्साह में है। हम चिंतन करें कि हमेशा उत्साह में क्यों नहीं रहते। बिना उत्साह का जीवन चलता तो है लेकिन आगे नहीं बढ़ता। हम कहीं पहुंच नहीं पाते। बिना पेट्रोल या पंक्चर हुई गाड़ी की सवारी नहीं की जा सकती। शीशे में हमारी छवि होती नहीं है पर दिखती जरूर है। यही हालत संसार की है, यहां सुख है तो नहीं पर दिखता जरूर है। अपने दुख को कम मानने के लिए दूसरों के दुख को देखना ठीक नहीं है। कोई भी समस्या छोटी या बड़ी नहीं होती, लेकिन मन उसे छोटा या बड़ा बना देता है। उत्साह समस्या को अनदेखी करने की भी ताकत देता है। पत्थर को कंकर बनाने की ताकत भी उत्साह में ही है। भगवान को कभी मत बोलो कि मेरी समस्या बड़ी है बल्कि समस्या को बोलो कि मेरे भगवान बहुत बड़े हैं। कोई भी टीम हारने के लिए मैदान में नहीं उतरती है और आखरी गेंद तक उम्मीद बनी रहती है। उत्साह हो तो गडढे में गिरा व्यक्ति भी एवरेस्ट तक अपना परचम फहरा सकता है।
संलग्न चित्र – अनुराग नगर में धर्मसभा को संबोधित करते राष्ट्रसंत पद्मविभूषण आचार्य रत्नसुंदर सूरीश्वर म.सा.।