श्योपुर। प्रदेश के अकेले श्योपुर जिले में कुपोषण का दंश झेल रहे 22,200 से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से करीब 3500 बच्चे अति कुपोषित की श्रेणी में आते हैं। इन्हें पोषण देने का दावा महिला बाल विकास विभाग लंबे वक्त से कर रहा है। हजारों करोड़ का बजट इसके लिए आता है, लेकिन हालात जस के तस हैं। लापरवाही के चलते श्योपुर जिले में कुपोषित बच्चों की मौतों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। हालत इस कदर बिगड़े हुए हैं कि बीते एक महीने में 18 मासूम बच्चों ने कुषोपण के चलते दम तोड़ दिया है। 18 बच्चों की मौत के बाद दिल्ली तक हड़कंप मच गया है। आनन-फानन में महिला बाल विकास विभाग की मंत्री ईमरती देवी और अफसर जिले के गांव-गांव घूम रहे हैं। मंत्री के साथ अधिकारियों की टीम कुपोषण प्रभावित कराहल इलाके के गांवों खुर्रका, अगरा, गोलीपुरा, सहित अन्य गांवों का दौरा कर रही हैं। मंत्री के निरीक्षण के दौरान उन्हें बताया गया कि शिवलालपुरा में 17 महीने से कंट्रोल का राशन नहीं मिल रहा है। जब ग्रामीणों को कंट्रोल से राशन ही नहीं मिल रहा तो उनकी भूख कैसे मिटेगी, यह एक बड़ा सवाल है। कुपोषित बच्चों को लेकर एनआरसी केन्द्र पहुंची महिलाओं का कहना है कि उनके बच्चे कुपोषण की वजह से दम तोड़ रहे हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के आयुक्त एमबी ओझा से जब बच्चों की मौतों के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने बच्चों की मौत होना तो माना, लेकिन अलग-अलग बीमारियों से मौत होने की बात कहकर कुपोषण के मामले पर पर्दा डालने की कोशिश करते नजर आए।जिले में हुई कुपोषित बच्चों की मौतों को प्रशासन के आला अधिकारी भले ही बीमारियों से होना बता दें, लेकिन जिले के हजारों बच्चे कुपोषित और अतिकुपोषित हैं, इस बात को नजर अंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि जिले की तीनों एनआरसी केन्द्रों से लेकर गांव-गांव में कमजोर (अतिकुपोषित) बच्चों की तस्वीरें इंतजामों की हकीकत खोल रही है। श्योपुर जिले में ये कोई आज की घटना नहीं है। इससे पहले साल 2016 के अगस्त-सितंबर महीने में भी कुपोषण के चलते 55 बच्चों की मौत हुई थी। श्योपुर जिले की एनआरसी में सिर्फ बीस बच्चों को रखने की क्षमता है। लेकिन उस वक्त 250 से ज्यादा बच्चों को कुपोषण के चलते यहां भर्ती कराया गया था। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता कि सरकार इसके लिए कितनी गंभीर थी।