भारत के चंद्रयान-2 मिशन का मकसद चंद्रमा के प्रति जानकारी जुटाना और ऐसी खोज करना है, जिससे भारत के साथ-साथ पूरी मानवता को लाभ हो। चंद्रयान-2 खोज के एक नए युग को बढ़ावा देने, अंतरिक्ष के प्रति हमारी समझ बढ़ाने, प्रौद्योगिकी की प्रगति को बढ़ावा देने, वैश्विक तालमेल को आगे बढ़ाने और खोजकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ी को प्रेरित करने में सहायक साबित होगा। यह पहला भारतीय अभियान है, जो स्वदेशी तकनीक से चंद्रमा की सतह पर उतारा जाएगा। इस मिशन की सफलता से यह साफ हो जाएगा कि हमारे वैज्ञानिक किसी के मोहताज नहीं हैं।
दक्षिणी ध्रुव का महत्व
इसरो के अनुसार चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा, जहां अब तक कोई देश नहीं पहुंच पाया है। उस इलाके से जुड़े जोखिमों के कारण कोई भी अंतरिक्ष एजेंसी दक्षिणी ध्रुव पर नहीं उतरी है। अधिकांश मिशन भूमध्य चंद्ररेखा के आसपास गए हैं, जहां चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की तुलना में सपाट जमीन है। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से दिलचस्प है, क्योंकि इसकी सतह का बड़ा हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना में अधिक छाया में रहता है। स्थायी रूप से छाया में रहने वाले इन क्षेत्रों में पानी होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के ठंडे क्रेटर्स में प्रारंभिक सौर प्रणाली के लुप्त जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद हैं। ऐसे में इस क्षेत्र से भारत नई खोज एवं जानकारियां एकत्र कर सकेगा। चंद्रयान-1 की खोजों को आगे बढ़ाने के लिए चंद्रयान-2 को भेजा गया है। चंद्रयान-1 के खोजे गए पानी के अणुओं के साक्ष्यों के बाद आगे चांद की सतह पर, सतह के नीचे और बाहरी वातावरण में पानी के अणुओं के वितरण की सीमा का अध्ययन करने की जरूरत है।